9 जून 2017

लिक्खी है पाती

2- लिक्खी है पाती
 
अब ये दुनिया नहीं है भाती
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

बढ़ी बहुत बेचैनी मन में,
फैल रही नफरत जन-जन में
नही नींद भी अब आ पाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

Bhawna

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सच में दुनिया ऐसी ही हो चली है...अच्छी रचना

rameshwar kamboj ने कहा…

संसार के कटु सत्य को उजागर करती कविता । हार्दिक बधाई भावना जी

Sudershan Ratnakar ने कहा…

वर्तमान परिस्थितयों का सजीव चित्रण। सुंदर रचना।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

वर्तमान परिस्थितयों का सजीव चित्रण। सुंदर रचना