12 नवंबर 2012

असंख्य दीए सभी मेरे अपनों के जीवन में अखंड ज्योति की तरह जगमगाएँ इन्हीं शुभकामनाओं के साथ-


लो गई  एक और दीपावली, कुछ खट्टीमीठी, पुरानी यादों को लेकर जुड़े होंगे कुछ दिल पिछली दीपावली, तो कुछ टूटे भी  होंगे,कुछ बिछड़े होंगे तो कुछ मिलें भी होंगे,कहीं खूब जगमगाएँ होंगे कुछ दिए, तो कहीं टिमटिमाएँ भर होंगे, उन्हीं जज्बों को ले कुछ दीए "दिल के दरमियाँ" द्वारा  कुछ ऐसे-

सेदोका के दीए

सूखा दीपक
भरा था लबालब
तुम्हारी ही यादों से
जो जल उठा
सँभाला जिसे वर्षों
बड़े ही जतन से।
 

रोशन होता
एक और दीपक
इस दीपावली में
हवा का झोका
उड़ा ले गया संग
जाने क्यूँ बेख्याली में।


मिलके साथ
हमने थे सजाए
प्यार की रोशनी से
हजारों दीए
समेटतें हैं अब
किरचों को दर्द की।

डॉ० भावना कुँअर



10 अक्तूबर 2012

मधुर मिलन


शाम के व़क्त
सूरज के कदम
हौले-हौले से
जब लौटने लगें,
अपनी किसी
धुन में डूबे हुए 
साये से बने
पंछियों के कारवाँ
नीड़ों के रुख 
जब करने लगें,
शोख लहरें
अँधेरे की ओट ले
बिना आहट
सागर की बाहों में
मचलकर 
जब समाने लगें,
चंचल भौंरे
फूलों में छिपकर
बन्द होने का
बहुत बेसब्री से
यूँ इंतज़ार
जब करने लगें,
डगर पर
आहट के कदम
कुछ कम से
जब पड़ने लगें,
हाथों में लिये
चमकते सितारे
जुगनू जब
करीब आने लगें,
जलती लौ से
वो पिंघलती हुईं 
मोमबत्तियाँ
जाने-पहचाने से
गीले-गीले से
अक्स बनाने लगें,
दरवाजों के 
समान दिशाओं में
दोनों ही पट
जब समाने लगें,
दूर कहीं पे 
बतियाते फिरते
झींगुरों की भी
मधुरिम बतियाँ
जब सबको
सुनाई देने लगें,
उस समय
तुम मिलने आना
पेड़ों के साये
लहराते हुए यूँ
ले लेंगे हमें
आगोश में अपनी
कोई न हमें 
पहचान पायेगा
बरसों बाद
वो अधूरा मिलन
प्यार से भरी
कहानियाँ मन की
लिखकर जायेगा ।
डॉ० भावना कुँअर

Bhawna

21 सितंबर 2012

ऐसी मैं सीप


































Bhawna

14 सितंबर 2012

हिंदी दिवस और "दिल के दरमियाँ" का जन्मदिवस


मैं अपनी एक पुरानी रचना के साथ आप सभी को हिंदी दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ देती हूँ। पिछले दिनों कुछ ऐसी व्यस्तता रही कि ब्लॉग से दूरियाँ बनी रही लेकिन आप लोगों से दूरियाँ कभी नहीं हो सकती हमेशा ही अपने पाठकों कों,सह्रदयों को केक खिलाने का सोचती रही, आप कह सकते हैं कि बनने में कुछ ज्यादा ही वक्त लग गया। जी हाँ आपने सही पहचाना ६ अगस्त २००६ में शुरुआत हुई थी "दिल के दरमियाँ" की, आप सबके स्नेह, सहयोग, अपनत्व के कारण अपने ६ साल पूरे करके ७वें में प्रवेश कर गया है, और इंतज़ार कर रहा है एक पीस केक खाने का और थोड़ी सी आप सबकी शुभकामनाओं का...

हिन्दी का परचम

सब मिलकर आज, कसम ये खायें
हिन्दी को उच्च स्थान दिलायें ।

लगे प्रचार में हम सब मिलकर
ऐसा ही इक प्रण निभायें ।

पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
हिन्दी का परचम लहरायें।

इस भाषा के चाहने वालों
यादगार ये दिवस बनायें।

दुनिया भर के हिन्दी भाषी
इसको नत मस्तक हो जायें।


Bhawna

3 अगस्त 2012

कुछ मन की बात...


हमारे यहाँ तो राखी होती नहीं है। बचपन में हम बहुत रोया करते थे, जब सब बहनें अपने  भाइयों को राखी बाँधा करती थी और हम चुप खड़े देखा करते और फिर फूट-फूट कर रोया करते, हमारे भाई में बहुत उदास, आँखों में टिमटिमाते आँसुओं से बस हमको देखा करते, हम बच्चे करते भी तो क्या, धीरे-धीरे वक्त गुज़रा हम समझदार हुए और जाने कि हमारे यहाँ राखी क्यों नहीं मनाई जाती, पर आज भी ये त्यौहार आता है तो मन में बड़ी हलचल सी मच जाती है, आँखे कहीं स्थिर सी हो जाती हैं-


छाए उदासी
मन बने है पाखी
देखे जो राखी।






मैं जब देखूँ
धागों सिमटा प्यार
आँसू सँवारुँ।






मेरे पतिदेव के यहाँ राखी का  त्योहार  मनाया जाता है, वो परदेस में अपनी बहन द्वारा भेजी राखी देखकर प्रफुल्लित हो उठते हैं। मेरी बेटियों ने जब से होश सँभाला मैंने उन दोनों को मेरी तरह कभी उदास नहीं होने दिया वो दोनों एकदूसरे को राखी बाँधती हैं और बहुत खुश होती हैं और अपने पापा के लिये तो वो खुद राखी बनाती हैं कल भी कुछ ऐसा ही हुआ उनका ये प्यार देख मेरी कलम ने कुछ हाइकु लिख डाले जो आप सबके साथ बाँटती हूँ-







राखी जो आई
छोटी-छोटी खुशियाँ
संग में लाई।





मेल मिलाती
मोती और धागों का
स्नेह सजाती।


नन्हें से हाथ
मोतियों से सजाते
पापा का हाथ।




खुशी से झूमे
बिटिया का मस्तक
पापा जो चूमे।





राखी में छिपी
मधुर सी मुस्कान
जी भर खिली।



सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ...


Bhawna

27 जुलाई 2012

हर इंसान के पास एक ऐसा वक्त आता है जब वो प्यार भरी मीठी -मीठी बातें सुनकर अपनी एक अनोखी दुनिया बना लेता है जो इस दुनिया से एकदम अलग होती है पर जब उसकी आँखों से उस खूबसूरत दुनिया का परदा हटता है तो वो कहीं का नहीं रहता...











Bhawna

19 जुलाई 2012

सपनों के टूटने का दर्द क्या होता है ये वही जान सकता है जिसके सुनहरे सपने टूटकर चूर होते हैं क्या है कोई जिसके सभी सपने साकार हुए हों?


















Bhawna

15 जुलाई 2012

बहुत दिनों बाद कुछ कहने का मन हुआ है देखते हैं कि आपके दिलों तक आवाज पहुँचती है कि नहीं-
















Bhawna

28 मई 2012


बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर वापसी हुई कारण इंडिया जाना बहुत सारी यादों को समेटकर वापस सिडनी में वही सब रूटीन वर्क, पर इस बार एक बात बहुत अच्छी रही कुछ महत्वपूर्ण लोगों से मिलना। मेरठ में डॉ० सुधा गुप्ता जी से मैं भरपूर स्नेह बटोर कर लाई वास्तव में सुधा जी बहुत मिलनसार और कोमल ह्रदय महिला हैं। दिल्ली में रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी  से मिलना हुआ उनका पूरा ही परिवार बहुत अपनेपन से मिला बिल्कुल नहीं लगा कि हम पहली बार मिल रहे हैं। मैं, प्रगीत, ऐश्वर्या बस इन्हीं यादों को कैमरे में कैद कर वापस आ गए और अब बस फिर इन्तज़ार अगले साल का.... एक और बड़ी उपलब्धि हुई मेरी हाइकु पर दूसरी पुस्तक का आना पुस्तक का नाम है "धूप के खरगोश" यहाँ आप सब लोगों का स्नेह भी चाहिए तो बस देर मत कीजिए दो पंक्ति तो लिख ही डालिए अपनी इस पुरानी ब्लॉगर के लिए...

डॉ० सुधा गु्प्ता जी और मैं (31.03.2012)
प्रगीत,मैं,ऐश्वर्या,श्रीमती काम्बोज और श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी
(27.04.2012)

मेरा नया हाइकु संग्रह 26.04.2012


























































वर्षा जो आई
धूप के खरगोश
दूर जा छिपे।


ये हाइकु मेरा सबसे प्रिय हाइकु है जिसके कारण मैंने अपनी पुस्तक का नाम "धूप के खरगोश" रखा। बाकी अगली पोस्ट में...



Bhawna

6 मार्च 2012

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...


सभी लोग होली की तैयारी में लगे हैं तो चलिए हम भी अपनी २ रचनाएँ आपके साथ बाँटना चाहेगें जो काफी समय पहले होली पर लिखी थी।
आप सबको होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...



1- आई रे! आई रे! होली

रंग, अबीर, गुलाल लिए
मनमोहक श्रृंगार लिए
आई रे! आई रे! होली
सपनों का संसार लिए
ढोल, मंजीरे बज रहे हैं
घर रंगों से सज रहे हैं
धूम मची है गली-गली
सबको ही आह्लाद किए
आई रे! आई रे! होली
सपनों का संसार लिए
आज ना कोई रुसवा होगा
और ना कोई शिकवा होगा
रिश्तों की मृदु भांग पिए
मानवता का हार लिए
आई रे! आई रे! होली
सपनों का संसार लिए

2- संदेशा
आज बहारें झूम-झूम गा रही हैं।
अपने करों से दिशाओं को सजा रही हैं।
कल-कल करती झरनों की आवाज़ें
एक मधुर संगीत गुनगुना रहीं हैं।
झिलमिल करती तारों की बारात
देकर निमंत्रण तुम्हें बुला रहीं हैं।
दे रहें हैं सभी खुशियों का संदेशा
पलकें भी मधुर सपने सजा रहीं हैं।
अब होली का है आगमन
सभी ये संदेशा ला रही हैं।


Bhawna

5 मार्च 2012

सादर इण्डिया में हाइकु प्रकाशित


हिन्दी और अंग्रेजी की मासिक पत्रिका सादर इण्डिया के फ़रवरी अंक में सबसे पहले हाइकु प्रकाशित होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ...  आप भी पढ़िएगा जरूर और अपनी राय भी दीजिएगा जिसके बिना लेखन अधूरा है..




































Bhawna

26 फ़रवरी 2012

कुछ लम्हें ऐसे भी...


बहुत बुरा बीता ये फरवरी का महीना बीमारी ने इस कदर पकड़ा की छोड़ने का नाम ही नहीं लिया, यहाँ तक कि अस्पताल में एडमिट तक होना पड़ा, पूरा हफ्ता तो सिर दर्द ने बस नींबू की तरह निचोड़ ही डाला, ऐसा लगा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई थी और अब लौटकर आई हूँ विश्वास ही नहीं होता कि वो सब मेरे साथ हुआ।
सब छुट गया पढ़ना-लिखना, आना-जाना, परेशानी इस कदर बढ़ी कि जन्मदिन की बधाईयाँ जो मेरे अपनों ने मुझ तक भेजी वो भी मैं ना ले पाई ना कोई फोन ना कोई मेल मेरे अपने पाठको तक की मैं देख नहीं पाई बहुत बुरा लगा मुझे। आप सबसे माफी माँगते हुए फिर से इस लेखन कि दुनिया में वापस आ रही हूँ धीरे-२। आपको जल्दी ही हाइकु पर मेरी नई पुस्तक पढ़ने को मिलेगी।
मेरे बीमार होने से प्रगीत और मेरे अपनों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा, बच्चों का उदास चेहरा भी मुझे सहना पड़ा उनके भाव मेरे मन को छू रहे थे और मैं बेबस कुछ नहीं कर पा रही थी बस कुछ पंक्तियां मन के पटल पर उभर कर आईं जो कुछ इस तरह थीं-


















मुझे देखकर

तुम्हारी आँखों में

टिमटिमाने लगे थे

जो आँसू

मेरा सहारा पाकर

जो समा गए थे

मेरे कान्धों पर

वो मोती बन

आज भी मेरे साथ हैं...



Bhawna

17 फ़रवरी 2012

मेहनत के रंग

डॉ भावना कुँअर जिस सहजता से हाइकु या ताँका की रचना करती हैं , छोटे बच्चों के लिए भी उसी सहजता से सर्जनरत हैं । आज प्रस्तुत है आपकी कविता जो सद्य  प्रकाशित  संग्रह गीत -सरिता से ली गई है

3 फ़रवरी 2012

ताँका (गर्भनाल फ़रवरी)

गर्भनाल के फ़रवरी अंक में डॉ0 भावना कुँअर के ताँका पढ़िएगा । पूरा अंक पढ़ने  के लिए  क्लिक कीजिए-

26 जनवरी 2012

.फूलों जैसा मेरा देश,वतन से दूर


अपनी दो पुरानी रचनायें आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूँगी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ...
















फूलों जैसा मेरा देश


फूलों जैसा मेरा देश मुरझाने लगा
शत्रुओं के पंजों में जकडा जाने लगा
रात-दिन मेरी आँखों में एक ही ख्वाब
कैसे हो मेरा 'प्यारा देश' आजाद
कैसे छुडाऊँ इन जंजीरों की पकड से इसको
कैसे लौटाऊँ वापस वही मुस्कान इसको
कैसे रोकूँ आँसुओं के सैलाब को इसके
कैसे खोलूँ आजादी के द्वार को इसके
कैसे करूँ कम आत्मा की तड़प रूह की बेचैनी को
चढ़ जाऊँ फाँसी मगर दिलाऊँगा आजादी इसको
ये जन्म कम है तो, अगले जन्म में आऊँगा
पर देश को मुक्ति जरूर दिलाऊँगा। 
जो सोचा था कर दिखलाया
भले ही उसको फाँसीं चढ़वाया
शहीद भगत सिंह नाम कमाया
आज भी सब के दिल में समाया।


वतन से दूर

वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बसती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती।


बसी है अब भी साँसों में
वो सौंधी गंध धरती की
मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में
दुआ रब से यही करती।


बड़े ही वीर थे वो जन
जिन्होंने झूल फाँसी पर
दिला दी हमको आजादी।
नमन शत-शत उन्हें करती।


Bhawna

10 जनवरी 2012

ताँका ( हिन्दी चेतना -जनवरी- मार्च)

हिन्दी चेतना जन-मार्च-12

हिदी चेतना का जनवरी -मार्च अंक यहाँ से डाउनलोड किया जा सकता है ।


4 जनवरी 2012

"सच बोलते शब्द" में मेरे भी कुछ शब्द ...



"सच बोलते शब्द" राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी जी के सम्पादकत्व में यह दूसरा संकलन है। प्रथम संस्करण "कुछ ऐसा हो" आप लोग पढ़ ही चुके हैं। "सच बोलते शब्द" में भी मेरे हाइकु प्रकाशित हुए हैं मैं राजेन्द्र जी का आभार व्यक्त करते हुए आप लोगों के साथ ये हाइकु शेयर करना चाहती हूँ आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा...
















































Bhawna