23 मई 2007

रूह से मुलाकात



मेरी मुलाकात
एक रूह से हुई
एक पवित्र और सच्ची रूह से
मैंने देखा उसको तड़फते हुये
और भटकते हुये ।
मैंने महसूस किया
उसकी धड़कन को,
मैंने पूछा-
“क्या मैं ही तुम्हें देख सकता हूँ?”
उसने कहा- “हाँ सिर्फ तुम ही-
मुझे सुन सकते हो,
देख सकते हो
और महसूस कर सकते हो”
मैंने पूछा-
“लेकिन तुमने शरीर क्यों छोड़ा?
वो तड़फ उठी,
उसकी आँखों से नफ़रत बरसने लगी,
मैं सहम गया !
वो मेरे करीब आकर बैठ गयी
और बोली-
“मुझे नफ़रत है उस दुनिया से
जिसमें जीवन शरीर से चलता है
उस दुनिया में बस छल है
कपट है, फरेब है।
मैंने भी फ़रेब खाया है
उस दुनिया से
तो छोड़ दिया शरीर
उसी संसार में
और ये देखो-
ये है रूहों का संसार
ये बहुत अच्छा है तुम्हारी दुनिया से।”
मैं अपलक उसको देखता रहा
बरबस मेरी आँखे छलक पड़ीं
क्योंकि-
मैंने भी खाया था धोखा
उसी दुनिया से।
हम दोनों की एक ही कहानी थी,
तभी शायद मैं उसको
सुन सकता था, और महसूस कर सकता था।
मैं गहरे सोच में डूब गया
रूह मेरे अन्तर्मन को पढ़ चुकी थी
क्योंकि वो रूह थी
एक सच्ची और पवित्र रूह
उसने आगे बढ़कर
मेरी ओर हाथ बढ़ाया
मैं भी इन्कार न कर सका
अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया
और अचानक
मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी
और मैं
पहाड़ी से नीचे गिरा
मैंने देखा था अपना शरीर
गहरी खाई में,
निर्ज़ीव शरीर
और मैं उस रूह के साथ
उड़ता चला गया
एक खूबसूरत दुनिया में
जहाँ छल, कपट
और फरेब नहीं होता।

27 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

चलो अच्छा हुआ तुमको ज़माने में मिला कोई
भली ही कोई गैबी शै रही जो रूह थी खोई
अभी तो हम तलाशों में भटकते हैं कहीं पर हो
हमारे जिस्म में जो थी कहाँ है रूह वो खोई

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

भावना जी,रूह की उपमा दे कर आपने जो आत्म-दर्शन को शब्दों मे ढालनें की कोशिश की है उस मे आप सफल रही हैं।बधाई।

मैंने देखा था अपना शरीर
गहरी खाई में,
निर्ज़ीव शरीर
और मैं उस रूह के साथ
उड़ता चला गया
एक खूबसूरत दुनिया में
जहाँ छल, कपट
और फरेब नहीं होता।

Reetesh Gupta ने कहा…

अच्छी लगी आपकी रूह से मुलाकात....बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

वाह, क्या बात है!!!

बड़ी गहरी रचना है-रुह से मुलाकात!!

बहुत बहुत बधाई!

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना !
घुघूती बासूती

संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" ने कहा…

यह कविता तो फिर वंही बैठ कर लिखी होगी
यंहा बैठकर तुम ऐसी कविता लिख लो
ऐसा यह दुनिया होने नही देगी।
क्यों है ना?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर रचना के लिए बधाई

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

राकेश जी धन्यवाद।

सच्चे मन से, तलाश अगर हो ज़ारी
मिल जाती है, भले वह रूह हो हमारी ।

आपके विचार अच्छे लगे। एक बार फिर से शुक्रिया।

योगेश समदर्शी ने कहा…

आपकी कविता बहुत कुछ कहती है, दिखाती है, सोचने पर मजबूर करती है कहीं कहीं आखें भी खूलती है कुछ अलग सी बात बोलती है.
बधाई

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर कविता है भावना जी.. रूहों की दुनिया जरूर हसीन और पुरस्कून होगी

जिन्दगी बस यूंही चलते चले जाने के सिवा क्या है
ये बेवफ़ा हो तो मौत से निभाने के सिवा क्या है

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

परमजीत जी बहुत-बहुत शुक्रिया। लेखक जो कहना चाहता है अगर वह ठीक से कह पाये और पाठकों को उसमें कथन की सार्थकता नज़र आ जाये तो वहीं पूंजी बन जाती है लेखक की। एक बार फिर से शुक्रिया।

हरिराम ने कहा…

रूह से मिलते ही रूह निकल गई तन से... अच्छी संकल्पना है। पंचतत्व का शरीर तो सदैव अपवित्र है। श्रेष्ठ उपाय तो यही होगा कि शरीर में रहते हुए भी आत्म-चेतना का अनुभव किया जाए और निर्लिप्त होकर सभी कर्म किए जाएँ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

रीतेश जी समीर जी आपको रूह से मुलाकात पंसद आई बहुत-बहुत शुक्रिया।

Sajeev ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है भावना जी .... मगर इस पार से देखो तो उस पार की दुनिया हमेशा ही सुन्दर नज़र आती है.... कहीं ऐसा ना हो ग़ालिब यां भी वही काफ़िर सनम निकले ....

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

घुघूती बासूती जी रचना पंसद करने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

संतोष जी आपने सही कहा कि - "यह कविता तो फिर वंही बैठ कर लिखी होगी"
क्योंकि जब हम कुछ भी लिखते हैं तो हमें उस विषय में जिस पर हम लिखना चाहते हैं गहराई से डूबना पड़ता है और गहराई मे उतरना ही उस विषय तक पहुँचना अर्थात आपके शब्दों में-"वहीं बैठकर लिखना होगा।"आपने इतने अच्छे तरीके से मेरी "रूह से हुई मुलाकात" को पढ़ा, पहचाना ये जानकर बहुत खुशी हुई।अपना स्नेह बनाये रखियेगा।
बहुत-बहुत धन्यवाद।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

संजीत जी आप शायद पहली बार "दिल के दरमियां" पर तशरीफ लायें हैं। देखकर बहुत अच्छा लगा। आपको रचना पंसद आई बहुत-बहुत शुक्रिया।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

योगेश जी आपने पहचाना है उस रूह को जो बहुत कुछ कहना चाहती है, किन्तु हम लोग भ्रम पड़े हुये उसको समझ नहीं पाते समझ जायें तो दुनिया कुछ अलग तरह की ही जाये जिसकी हम कल्पना तो कम से कम कर ही सकते हैं और साथ में प्रयास भी।
बहुत-बहुत धन्यवाद रचना पंसद करने के लिये।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

मोहिन्दर कुमार जी वास्तव में इस बेदर्द दुनिया से तो अच्छी ही होगी वो रूहों की दुनिया।
रचना पंसद करने के लिये शुक्रिया।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

हरिराम जी आपका कहना काफी हद तक सही है, किन्तु ऐसा कर कौन पाता है और जो प्रयास करते भी हैं वो भी किन्हीं क्षणों में कमज़ोर पड़ जाते हैं। आप समाचार तो आये दिन पढ़ ही रहे होंगे, ब्लॉग पर भी काफी चर्चा चल रही है आज़कल।
तो बस कल्पना में ही उस खूबसूरती को तलाशते हैं हम लेखक लोग जो हमें वास्तविक ज़ीवन में मिलने की उम्मीद नहीं होती।
कल्पना पसंद आई उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

संजीव जी आपकी बात में भी दम है अब आपने तो मुझे डरा ही दिया सोचना पड़ेगा इस बारे में भी। वैसे इस दुनिया से कुछ अच्छा तो होगा वहाँ ?
मैं वहाँ पहुँचने के बाद आपको बताऊँगी। :):)

बहुत-बहुत शुक्रिया।

ALOK PURANIK ने कहा…

डा भावनाजी क्षमा पहले मांग लूं और परिचय दे दूं, मैं व्यंग्यकार हूं। व्यंग्यकार हर बात को खुराफाती नजर से देखता है। मैं अगर रुह से मिलता, तो अकबरकालीन रुह से मिलता, चंद्रगुप्त मौर्यकालीन रुह से मिलता और पूछता हे बता भाई, तेरे जमाने में रिश्वत का रेट क्या था। घोडे का लाइसेंस हासिल करने के लिए क्या रिश्वत देनी पड़ती थी। फिर इस पर स्टडी छापता। अजी मिलना था तो भामाशाह की रुह से मिलकर पूछतीं कि भईया बाकी का खजाना किधर है। देखिये, मैं शुरु हो गया ना। पर व्यंग्यकार की प्रतिक्रिया को अन्यथा नहीं लेंगी, ऐसी शुभकामना के साथ
आलोक पुराणिक

Divine India ने कहा…

भावना जी,
एकदम नई रचना और कोरी भी जहाँ रुक कर थोड़ा सोचा जा सकता है और विचार किया जा सकता है…
गहरी आत्म-व्यंजना है इस कृति में…धन्यवाद!!!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

शुक्रिया आलोक जी :) :)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

दिविन जी आपको रचना पंसद आई बहुत आभारी हूँ। धन्यवाद।

RP Yadav ने कहा…

भावना जी..
आज मै आप के कई कॄतियो‍ को पड्‍ । सब अपने आप मे बे मिसाल है । " रूह से मुलाकात " पड्‍ने के बाद अपनी comment को कहने से रोक नही पाया ।
“मुझे नफ़रत है उस दुनिया से
जिसमें जीवन शरीर से चलता है
रूह स‍सार छोड्‍अने का कारण बताता है । सबसे सशक्त प‍क्तिया लगी । पूर्ण कविता इतनी अच्छी लगी जिसे शब्दो‍ मे बया‍ करना मुश्किल है ।

RP Yadav
rpyadav2006@gmail.com

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

आर०पी० जी बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपको मेरी सभी रचनायें पंसद आई खासकर "रूह की मुलाकात" आभारी हूँ!